क्या आप जानते हैं भगवान शिव से जुड़ी ये 10 गुप्त बातें

न आदि और न अंत है उसका, वो सबका, न इनका, न उनका, वही शून्य है वही इकाय, जिसके भीतर बसा शिवाय। वास्तव में भगवान शिव की महिमा अपरंपार है। पुराणों में उन्हें सृष्टि का जन्मदाता भी माना जाता है। वो देवों के देव हैं इसीलिए महादेव कहलाते हैं। कभी रुद्र तो कभी भोलेनाथ बन जाते हैं। जितने रहस्यमयी उनके रूप हैं उतनी ही रहस्यमयी उनकी बातें। आइए जानते हैं भगवान शिव से जुड़ी कुछ गुप्त बातें –


1 – शिव की तीसरी आंख और प्रलय – भगवान शिव का एक नाम त्रिलोचन भी है। यानि कि तीन आंखों वाला। वेदों ने शिव के तीसरे नेत्र को प्रलय की संज्ञा दी है। कहते हैं कि अगर उनकी तीसरी आंख खुल गई तो ये दुनिया भस्म हो जाएगी। वहीं दूसरी तरफ शिव की तीसरी आंख ज्ञान चक्षु है जिसके खुलते ही काम (वासना) जलकर भस्म हो जाते हैं।


2 – शिव के नृत्य का रहस्य – बहुत से लोग नटराज की मूर्ति की असलियत नहीं जानते हैं लेकिन आपने अकसर इसे क्लासिकल डांसर्स के घर या क्लास रूम में रखा हुआ जरूर देखा होगा। दरअसल, ये रूप शिव के नृत्य मुद्रा को दिखाता है। हालांकि इस नृत्य के भी दो रूप है। एक उनके क्रोध का प्रलंयकारी रौद्र तांडव रूप को दर्शाता है, तो वही दूसरा आनंद प्रदान करने वाले तांडव को। इसीलिए रौद्र तांडव करने वाले शिव रूद्र कहे जाते हैं, आनंद ताडंव करने वाले नटराज स्वरूप में पूजे जाते हैं।



 3 – शिव ने दिया था ब्रह्मा को श्राप – एक कथा के अनुसार सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा अपनी पुत्री पर ही मोहित हो गए थे, ये जानकर शिव के क्रोध का ठिकाना नहीं रहा और उन्होंने ब्रह्मा को श्राप दे दिया। कहा- ‘आपने अपनी पुत्री के विषय में ऐसी बात कहकर पिता- पुत्री के रिश्ते का अपमान किया है। इसलिए आप पूजने के योग्य नहीं हैं। आने वाले समय में सभी देवी- देवताओं को पूजा जाएगा लेकिन आपको नहीं’। यही कारण है कि ब्रह्मा को पूजा नहीं जाता।

4 – सावन में अपने ससुराल आते हैं शिव – सावन और शिव का संबंध इतना खास इसलिए माना जाता है कि भगवान शिव शंकर सावन के महीने में धरती पर अवतार लेकर अपने ससुराल गए थे। जहां उनका स्वागत भी बड़े अच्छे से जल को अर्घ्य देकर किया गया था। वहीं कुछ मान्यताओं में यह भी माना जाता है कि सावन के इस विशेष महीने में भगवान भोलेनाथ अब भी अपने ससुराल आते हैं।
5 – श्रीकृष्ण और शिव जी के बीच हुआ था युद्ध – कहा जाता है कि श्रीकृष्ण ने बाणासुर का विरोध करने के लिए भगवान शिव से युद्ध किया था। उस दौरान शिव जी ने ‘माहेश्वर ज्वर’ को छोड़ा और उसके विरोध में श्रीकृष्ण ‘वैष्णव ज्वर’ का उपयोग कर दुनिया का पहला जीवाणु युद्ध लड़ा था।
6 – भगवान शिव और भस्म – शिव के शरीर पर भस्म लगी होती है। शिवलिंग का अभिषेक भी भस्म से किया जाता है। भस्म का लेप यह दर्शाता है कि यह संसार नश्वर है और सबका अंत निश्चित है जिसे कोई नहीं बदल सकता।
7 – भगवान शिव के 2 नहीं 6 पुत्र हैं – ज्यादातर लोगों को भगवान शिव के दो पुत्रों के बारे में ही पता है लेकिन उनके छह पुत्र हैं – गणेश, कार्तिकेय, सुकेश, जलंधर, अयप्पा और भूमा।


8 – भगवान शिव और 12 ज्‍योतिर्लिंग – शिव पुराण के अनुसार प्राचीनकाल में आकाश से ज्‍योति पिंड पृथ्‍वी पर गिरे और उनसे थोड़ी देर के लिए प्रकाश फैल गया। इस तरह के अनेक उल्का पिंड आकाश से धरती पर गिरे थे। भारत में गिरे अनेक पिंडों में से प्रमुख बारह पिंड को ही ज्‍योतिर्लिंग में शामिल किया गया। जिनके नाम हैं सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ॐकारेश्वर, वैद्यनाथ, भीमशंकर, रामेश्वर, नागेश्वर, विश्वनाथजी, त्र्यम्बकेश्वर, केदारनाथ, घृष्णेश्वर।

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मान्यताएं / शिवजी को क्यों प्रिय है सावन? 29 जुलाई को इस माह का दूसरा सोमवार

शिवलिंग पर 21 बिल्व पत्र चढ़ाएं और ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जाप करे
अभी सावन चल रहा है और इसे शिवजी का प्रिय माह माना जाता है। इन दिनों में शिवजी की विशेष पूजा करने की परंपरा है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार प्राचीन काल में माता सती ने अपने पिता दक्ष के हवन कुंड में अपनी देह त्यागी थी। इसके बाद माता ने पर्वत राज हिमालय के यहां पार्वती के रूप में जन्म लिया। माता पार्वती ने शिवजी को पुन: पाने के लिए सावन माह में ही कठोर तप किया था। देवी की तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने पार्वती की मनोकामना पूरी की और उनसे विवाह किया था। सावन में ही भोलेनाथ ने पत्नी के रूप में पार्वती को प्राप्त किया था। इसी वजह से शिवजी को ये माह विशेष प्रिय माना जाता है।


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मोटापा घटाना है तो खाना खाने से पहले पीएं ये ड्रिंक, सिर्फ 5 दिनों में ही दिखने लगेगा असर

भागदौड़ भरी जिंदगी में खुद के लिए समय निकालना थोड़ा मुश्किल है लेकिन नामुमकिन नहीं। क्योंकि शरीर से बढ़कर कुछ नहीं है। यूं तो शरीर पर थोड़ी बहुत चर्बी बुरी नहीं लगती, लेकिन ये बढ़ती है तो आपको खुद बता देती है कि बस, अब आपका वजन सीमा से बाहर जा रहा है। यहां हम आपको डाइटिंग, जिमिंग और वर्कआउट करने की सलाह नहीं दे रहे हैं, बल्कि कम समय में आप वजन को तेजी से कैसे घटा सकते हैं, इसका एक घरेलू नुस्खा आपके साथ शेयर कर रहे हैं। जिन्हें आप अगर रोजाना फॉलो करते हैं तो आपका वजन हर गुजरते दिन के साथ कम होता चला जाएगा और इसका असर आपको उपाय शुरू करने के 5 दिन बाद से ही खुद दिखने लगेगा। बस इसके लिए आपको खाना खाने से आधे घंटे पहले ये नुस्खा अपनाना है। आइए जानते हैं कि कैसे –


वजन कम करने का घरेलू नुस्खा – हमारे किचन में ऐसी कई जड़ी- बूटियां मौजूद होती हैं जिनका पता हमें खुद नहीं होता है। इनकी मदद से कई रोगों को जड़ से खत्म किया जा सकता है। उन्हीं में शामिल हैं दालचीनी और हल्दी। इनसे तैयार होने वाले वेट लॉस ड्रिंक से आपका मोटापा तेजी से कम होगा और आपको किसी तरह की कोई परेशानी भी नहीं होगी। ये आपको पीने में एकदम चाय की तरह लगेगी और इसका स्वाद भी अच्छा होता है।
टरमरिक ड्रिंक बनाने के लिए आपको चाहिए –
1- 1/ 4 टेबलस्पून हल्दी
2 – 1 चुटकी दालचीनी पाउडर
3 – 1/ 2 टेबलस्पून शहद
4 – 1 कम गर्म पानी
5 – 1/ 2 टेबलस्पून नींबू का रस


ऐसे बनाएं ये ड्रिंक – सबसे पहले एक कप या आधे ग्लास में गर्म पानी लें। अब इसमें हल्दी पाउडर डालकर चम्मच से तब तक चलाते रहें जब तक कि हल्दी पूरी तरह से पानी में घुल न जाए। अब इसमें नींबू का रस और शहद डालकर मिक्स करें। अब दालचीनी पाउडर डालकर इसे 4 से 5 मिनट के लिए रख दें। उसके बाद इसे पीने से पहले एक बार फिर से अच्छी तरह मिक्स कर लें।
ऐसे करें इस ड्रिंक का सेवन – इस ड्रिंक का सेवन आपको ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर करने से आधे घंटे पहले या बाद में रोजाना करना है। शुरूआत में 7 दिन तक आप दिन में 3 बार ये ड्रिंक पिएं और उसके बाद आप दिन में 2 बार भी पियेंगे तो भी असर करेगा।
याद रखें – हां अगर आपको रिजल्ट जल्दी चाहिए तो इस स्लिमिंग ड्रिंक लेने के साथ-साथ रोज कम से कम आधा-पौना घंटे की वॉक जरूर करें और हो सके तो जंक फूड से दूर रहें।
Source: Desibomb.in

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कभी एथलीट नहीं बनना चाहती थीं हिमा दास, जीते 18 दिन में 5 गोल्ड मेडल

भारत की नई उड़न परी हिमा दास ने शनिवार को एक और गोल्ड मेडल जीता. उन्होंने चेक रिपब्लिक में जारी एक इंटरनेशनल इवेंट में 400 मीटर रेस का गोल्ड मेडल हासिल किया. यह दौड़ उन्होंने 52.09 सेकंड में पूरी कर ली.


आपको बता दें, भारत की युवा ऐथलीट हिमा दास ने 18 दिन में 5वां गोल्ड मेडल जीतकर दुनिया भर में अपना नाम सुनहरे अक्षरों में लिख दिया है. आइए जानते हैं कैसे शुरू हुआ उनका करियर, किस कोच ने दी थी ट्रेनिंग.हिमा पिछले साल चर्चा में आई थीं जब उन्होंने जुलाई 2018 में IAAF वर्ल्ड अंडर- 20 एथलेटिक्स चैंपियनशिप में महिलाओं की 400 मीटर की दौड़ में पहला स्थान हासिल कर गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया था. हिमा ने राटिना स्टेडियम में खेले गए फाइनल में 51.46 सेकेंड का समय निकालते हुए जीत हासिल की थी.
हिमा का जन्म असम के नौगांव जिले के कांदुलिमारी के एक किसान परिवार में 9 जनवरी 200 में हुआ था. उनके पिता चावल की खेती करने वाले किसान हैं. हिमा चार भाई-बहनों में सबसे बड़ी हैं. उनकी दो छोटी बहनें और एक भाई है. एक छोटी बहन दसवीं कक्षा में पढ़ती है, जबकि जुड़वां भाई और बहन तीसरी कक्षा में हैं. हिमा ने अपने गांव से एक किलोमीटर दूर स्थित ढींग के एक कॉलेज में बारहवीं की पढ़ाई की है. इसी साल उन्होंने असम बोर्ड की कक्षा 12वीं की परीक्षा फर्स्ट डिवीजन से पास की है.
हेमा ने कभी नहीं सोचा था कि वह भविष्य में एथलिट बनेंगी. वह लड़कों के साथ फुटबॉल खेलती थीं. एक बार स्थानीय कोच ने उन्हें सलाह देते हुए कहा था कि फुटबॉल की बजाए उन्हें एथलेटिक्स में अपना करियर बनाना चाहिए.



TAMPERE, FINLAND – JULY 10: Hima Das of India in action during heat 4 of the women’s 400m heats on day one of The IAAF World U20 Championships on July 10, 2018 in Tampere, Finland. (Photo by Ben Hoskins/Getty Images for IAAF)

जब पड़ी कोच निपॉन की नजर हिमा पर कोच निपॉन की नजर उस वक्त पड़ी जब वह ‘स्पोर्ट्स एंड यूथ वेलफेयर’ के डायेरक्टर के साथ बैठे थे. उस वक्त उन्होंने देखा एक लड़की ने काफी सस्ते स्पाइक्स (खिलाड़ी के कीलदार जूते) पहने हुए थे, लेकिन फिर भी उसने 100 और 200 मीटर की दौड़ में गोल्ड मेडल हासिल कर लिया. आपको बता दें, उनके कोच ने कहा- हिमा हवा की तरह दौड़ रही थी. मैंने इतनी कम उम्र में ऐसी प्रतिभा किसी के अंदर नहीं देखी थी.
आपको बता दें, गुवाहटी आने के बाद कोच ने हिमा के लिए सरसाजई स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स के पास एक किराए के घर की व्यवस्था की. जिसके बाद उन्होंने हिमा के लिए अधिकारियों से राज्य अकादमी में शामिल होने के लिए रिक्वेस्ट की जो मुक्केबाजी और फुटबॉल में मशहूर था. वहीं “एथलेटिक्स के लिए कोई अलग विंग नहीं थी, लेकिन हिमा के बेहतरीन प्रदर्शन को देखते हुए उन्हें अकादमी का हिस्सा बना लिया गया.
वहीं हिमा के माता- पिता इस बात पर बिल्कुल राजी नहीं थे कि हिमा कहीं दूर जाकर ट्रेनिंग करें. लेकिन हिमा के कोच निपॉन ने परिवार वालों को जैसे तैसे राजी कर लिया. जिसके बाद हिमा दास को उनके कोच ने ट्रेनिंग देनी शुरू की और बहुत जल्द ही वह बेहतरीन स्पीड पकड़ने में सफल हो गई.

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अमेजन पर चल रहा है बंपर डिस्काउंट, ये 7 प्रोडक्ट आप मिस नहीं करना चाहोगे

आनलाईन रिटेल शापिंग की सबसे बड़ी वेबसाइट अमेजन को कौन नहीं जानता होगा। अमेजन आज के समय में दुनिया की सबसे बड़ी आनलाईन रिटेल शापिंग की सबसे बड़ी वेबसाइट बन चुकी है। अमेरिका के साथ साथ भारत में भी एक बड़ा नाम बनकर उभर रही है।
अमेज़न समय समय पर अपने ग्राहकों को बड़ी बड़ी छूट देने के लिए भी फेमस है। ऐसे ही बंपर डिस्काउंट सेल अमेजन पर चल रही है। इसलिए आप भी मत चूकें और आज ही अपने काम की चीज बहुत ही सस्ते दामो पर घर मंगवा ले।
तो अब हम बता रहे हैं वो 10 डील जो आप कभी छोड़ना नहीं चाहोगे…

1.सैमसंग गैलेक्सी एम 20 मोबाइल – बाजार में यह बेहतरीन मोबाइल रु.13500 का मिल रहा है लेकिन ये आपको अमेजन पर बहुत कम दामों पर रु.11990 मिल रहा है।

2.जे बी एल हेडफ़ोन – ये अब तक के सबसे ज्यादा बिकने वाले हेडफोन है जिसका मार्केट प्राइज़ 1299 है लेकिन ये आपको यहाँ सिर्फ 649 में मिल रहे हैं।

3. इनटैक्स का 11000 mAH का पावर बैंक– ये डील आपको दीवाना कर देगी, ये पावर बैंक मार्केट में 1899 का है लेकिन ये यहाँ आपको मात्र 549 में मिल रहा है, फिर सोच क्या रहे हो।


4.जे बी एल का ब्लूटूथ स्पीकर – ये पावरफुल स्पीकर बाजार में 2600 का है और अमेजन पर 1499 का मिल रहा है।


5.लीफ बास के वायरलेस हेडफ़ोन – ये क्लासिक हेडफोन आपको अमेजन पर मात्र 949 के मिल रहे हैं, तो देर मत करो दोस्तों।

6.मसल्स ब्लेज का वे प्रोटीन – मेरे बाडी बिल्डर दोस्तों के लिए भी एक बेहतरीन मौका है अमेजन पर, बाजार में मिलने वाला ये वे प्रोटीन (1 kg) 1800 का है लेकिन यहाँ आपको ये अभी मात्र 1199 का मिल रहा है।

7.TCL का 49 इंच फुल एचडी एल ई डी  (SMART TV)– भाई लोगों ये डील भी आप मिस नहीं कर सकते हैं, अगर आप भी लाना चाह रहे हैं ये बडे़ साईज का एल ई डी तो आज ही आर्डर कर दिजिए अमेजन पर क्योंकि 39999 की कीमत का यह एल ई डी आपको यहाँ मिल रहा है मात्र 24999 का… एंजोय शांपिग।

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149 साल बाद लगेगा साल का दूसरा चंद्रग्रहण, बरतें ये सावधानियां


सूर्य ग्रहण के बाद अब 16 जुलाई को साल का दूसरा चंद्र ग्रहण लगने वाला है. इस बार यह चंद्रग्रहण गुरु पूर्णिमा के दिन 16 जुलाई को लगेगा. ऐसा दुर्लभ योग 149 साल बाद बन रहा है. इससे पहले साल 1870 में ऐसा दुर्लभ योग देखने को मिला था.
सूर्य ग्रहण के बाद अब 16 जुलाई को साल का दूसरा चंद्र ग्रहण लगने वाला है. इस बार यह चंद्रग्रहण गुरु पूर्णिमा के दिन 16 जुलाई को लगेगा. ऐसा दुर्लभ योग 149 साल बाद बन रहा है. इससे पहले साल 1870 में ऐसा दुर्लभ योग देखने को मिला था. खास बात यह है कि इस बार यह चंद्रग्रहण भारत में भी दिखाई देगा. यह ग्रहण पूरे तीन घंटे तक रहेगा. 16 जुलाई 2019 की रात करीब 1.30 बजे से ग्रहण शुरू हो जाएगा. इसका मोक्ष 17 जुलाई की सुबह करीब 4.30 बजे होगा.


हिन्दू धर्म में ग्रहण को काफी महत्व दिया जाता है. हिंदू पंचांग की मानें तो इस बार चंद्र ग्रहण आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में लग रहा है. यह चंद्रग्रहण खंडग्रास चंद्र ग्रहण कहा जा रहा है. ग्रहण को लेकर कई तरह की मान्यताएं भी प्रचलित हैं.
ग्रहण को लेकर प्रचलित कुछ नियम–
1-ग्रहण के दौरान अन्न जल ग्रहण नहीं करना चाहिेए.
2-चंद्र ग्रहण के दौरान स्नान नहीं करना चाहिए. ग्रहण खत्म होने के बाद या इससे पहले स्नान कर लें.
3-ग्रहण को कभी भी खुली आंख से नहीं देखना चाहिए. इसका आंखों पर बुरा असर पड़ता है.
4-ग्रहण के समय मंत्रो का जाप किया जा सकता है.
ग्रहण पर लाभ पाने के लिए करें ये उपाय-
1-यदि घर में कोई लंबे समय से बीमारी है तो ग्रहण के बाद घी और खीर से हवन आदि करने से से लाभ होता है.
2-चंद्रमा कमजोर स्थिति में है तो ‘ऊं चंद्राय नम:’ मंत्र का जाप करने से लाभ मिलेगा.
3-ग्रहण के दौरान प्राणायाम और व्यायाम करना चाहिए, सोच को सकारात्मक रखना चाहिए.
4-चंद्रग्रहण समाप्त होने के बाद घर में शुद्धता के लिए गंगाजल का छिड़काव करना चाहिए.
5-स्नान के बाद भगवान की मूर्तियों को स्नान करा कर उनकी पूजा करें.
6-जरूरतमंद व्यक्ति और ब्राह्मणों को अनाज का दान करना चाहिए.

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दुनिया में छोटे ताजमहल के नाम से विख्यात है ये मकबरा, सच्चाई जानकार हैरान रह जाएंगे आप



कई बार ऐसा होता है कि किसी जगह को देखकर हमें किसी और जगह की याद आ जाती है. हमें लगता है कि ये जगह तो हमने कहीं देखी है. जैसे, आप किसी हिलस्टेशन पर जाते हैं, तो आपको वहां के नजारे देखकर किसी और हिलस्टेशन का ख्याल आता होगा. ऐसी ही एक जगह है बीबी का मकबरा, जिसे देखकर आपको लगेगा कि आप आगरा का ताजमहल देख रहे हैं. बीबी के मकबरे को छोटे ताजमहल के नाम से जाना जाता है और ये महाराष्ट्र के ताजमहल के नाम से भी विख्यात है।


यह मकबरा महाराष्ट्र के औरंगाबाद में स्थित है. शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज के लिए आगरा में ताजमहल बनवाया था, जिसे देखा देखी औरंगजेब के बेटे और शाहजहां के पोते आजम शाह ने ताजमहल से प्रेरित होकर अपनी मां दिलरास बानो बेगम की याद में बीबी का मकबरा बनवाया. इसका निर्माण 1651 से 1661 ईसवीं के बीच करवाया गया था. इसे देश का दूसरा ताजमहल भी कहते हैं.
7 लाख रुपये की लागत से बना :: ऐसा कहा जाता है कि इसे बनवाने का खर्च तब 700,000 रुपए आया था, जबकि ताजमहल बनवाने का खर्च उस समय 3.20 करोड़ रुपए आया था. यही वजह है कि बीबी का मकबरा को ‘गरीबों का ताजमहल’ भी कहते हैं. आगरा के ताजमहल को शुद्ध सफेद संगमरमर से बनवाया गया था, वहीं बीबी का मकबरा का गुम्बद संगमरमर से बनवाया गया था. मकबरा का बाकी हिस्सा प्लास्टर से तैयार किया गया है, ताकि वह दिखने में संगमरमर जैसा हो।

ये है खास आकर्षण :: बीबी के मकबरा में सुंदर गार्डन, पॉन्ड्स, फव्वारे, झरने हैं. यहां पर अच्छा खासा पाथ-वे है और इसके गार्डन की दीवारें भी ऊंची बनाई गई हैं ताकि बाहर का व्यक्ति अंदर न देख सके. इसके तीन साइड में ओपन पवेलियन है.
अब यहाँ कैसे पहुंचा जा सकता है हम ये भी आपको बताते हैं ::  बस से आने वाले यात्री राज्य के किसी भी शहर से कम दाम में औरंगाबाद यानि सिटी ऑफ गेट तक आ सकते है. शहर में भ्रमण करने के लिए भी कई बसें चलती है, जो पर्यटकों को पूरे शहर में घूमा सकती है.  यहां से 120 किमी. दूर रेलवे स्टेूशन है जिसे मनमाद रेलवे स्टेसशन कहा जाता है. यहां से औरंगाबाद तक 900 रूपए में प्राइवेट टैक्सीे से पहुंचा जा सकता है. औरंगाबाद में एक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है जो देश के सभी प्रमुख शहरों और राज्यों से जुड़ा हुआ है. मुंबई, नासिक, शिरडी, पुने, शनिसिंगणापुर, लातूर, नांदेड़ जैसे बड़े शहरों से आपको सीधे तौर साधन आसानी से मिल जाएंगे।


कब जाएं :: औरंगाबाद में गर्मी के दौरान न आएं. गर्मियों के मौसम में यहां का वातावरण बेहद गर्म और बॉडी को दिक्कनत देने वाला होता है.  इस शहर को घूमने का बेस्ट‍ मौसम सर्दियों का है. इस दौरान यहां का न्यूइनतम तापमान 10 डिग्री सेल्सियस रहता है. अक्टूसबर से मार्च तक यहां बड़ी तादाद में लोग घूमने आते हैं. वहीं आप यहां मानसून में भी घूम सकते हैं.
टिकट ::   यहां घूमने के लिए भारतीयों के लिए 10 रुपए का टिकट है. वही विदेशी नागरिकों के लिए 250 रुपए का टिकट है.
तौर फिर देर ना करिये बैग पैक करिए और निकल जाइये छोटे ताजमहल के दीदार के लिए।


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उत्तर प्रदेश का 75 घर वाला गांव जिसने देश को दिए 47 IAS अधिकारी



IAS और IPS की परीक्षा देश में सबसे कठिन मानी जाती है लेकिन अगर आपको कोई कहे कि एक छोटे से गांव जिसमें 75 घर हो लेकिन उस गांव से 47 IAS अधिकारी बन चुके है तो एक बार के लिए विश्वास करना मुश्किल है. लेकिन उत्तर प्रदेश में एक ऐसा गांव है जहाँ पर हर घर में IAS और PCS अधिकारी है.


उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के माधोपट्टी में एक ऐसा गांव है जहां से कई आईएएस और ऑफिसर हैं। इस गांव में महज 75 घर हैं, लेकिन यहां के 47 आईएएस अधिकारी विभिन्‍न विभागों में सेवा दे रहे हैं।
इतना ही नहीं माधोपट्टी की धरती पर पैदा हुए बच्‍चे इसरो, भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर, विश्‍व बैंक के साथ-साथ कई देशों के राजदूत भी हैं। सिरकोनी विकासखंड का यह गांव देश में अपने अनोखे रिकॉर्ड को लेकर चर्चा में बना रहता है.
दरअसल, यहां प्रख्यात शायर रहे वामिक जौनपुर के पिता मुस्तफा हुसैन सन 1914 पीसीएस और 1952 में इन्दू प्रकाश सिंह का आईएएस की दूसरी रैंक में सिलेक्शन क्या हुआ मानो यहां के युवाओं में खुद को साबित करने की होड़ लग गई. आईएएस बनने के बाद इन्दू प्रकाश सिंह फ्रांस सहित दुनिया के कई देशों में भारत के राजदूत रहे.इस गांव के चार सगे भाइयों ने आईएएस बनकर जो इतिहास रचा है वह आज भी भारत में एक रिकॉर्ड है. इन चारों सगे भाइयों में सबसे पहले 1955 में आईएएस की परीक्षा में 13वीं रैंक प्राप्त करने वाले विनय कुमार सिंह का चयन हुआ. विनय सिंह बिहार के मुख्यसचिव पद तक पहुंचे.


सन् 1964 में उनके दो सगे भाई क्षत्रपाल सिंह और अजय कुमार सिंह एक साथ आईएएस अधिकारी बने. क्षत्रपाल सिंह तमिलनाडू के प्रमुख सचिव रहें, आईएएस श्री अजय कुमार सिंह उत्तर प्रदेश के नगर विकास के सचिव रह चुके है. विनय सिंह भाई के चौथे भाई शशिकांत सिंह 1968 आईएएस अधिकारी बने.इनके परिवार में आईएएस बनने का सिलसिला यहीं नहीं थमा. 2002 में शशिकांत के बेटे यशस्वी न केवल आईएएस बने बल्कि इस प्रतिष्ठित परीक्षा में 31वीं रैंक हासिल की. इस कुनबे का रिकॉर्ड आज तक कायम है।
इसके अलावा इस गांव की आशा सिंह 1980ं बैच, उषा सिंह 1982 बैच, कुंवर चद्रमौल सिंह 1983 बैच और उनकी पत्नी इन्दू सिंह 1983 बैच, इंदु प्रकाश के बेटे अमिताभ और उनकी पत्नी सरिता, 1984 बैच की आईएएस अधिकारी हैं.ऐसा नहीं है कि केवल यहाँ से आईएएस अधिकारी ही निकले है. पीसीएस अधिकारियों की तो यहां पूरी फौज है. इस गांव के राममूर्ति सिंह, विद्याप्रकाश सिंह, प्रेमचंद्र सिंह, पीसीएस महेन्द्र प्रताप सिंह, जय सिंह, प्रवीण सिंह और उनकी पत्नी पारुल सिंह, रीतू सिंह अशोक कुमार प्रजापति, प्रकाश सिंह, राजीव सिंह, संजीव सिंह, आनंद सिंह, विशाल सिंह व उनके भाई विकास सिंह, वेदप्रकाश सिंह, नीरज सिंह पीसीएस अधिकारी बने चुके थे.


2013 की परीक्षा के आए रिजल्ट में इस गांव की बहू शिवानी सिंह ने पीसीएस परीक्षा पास करके इस कारवां को और आगे बढ़ाया है.इस गांव के अन्मजेय सिंह विश्‍व बैंक मनीला में, डॉक्‍टर नीरू सिंह, लालेन्द्र प्रताप सिंह वैज्ञानिक के रूप भाभा इंस्टीट्यूट तो ज्ञानू मिश्रा इसरो में सेवाएं दे रहे हैं। यहीं के रहने वाले देवनाथ सिंह गुजरात में सूचना निदेशक के पद पर तैनात हैं.

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हम जिस पत्तल को भूल रहे हैं, वो जर्मनी बना रहा है

दुनिया जब इतनी तेज़ नहीं थी. और डिजिटल के नाम पर पेट्रोल पंप और पीसीओ पर पैसा दिखाने वाली मशीन बस होती थी. कुछ थे कि जिनके पास डिजिटल घड़ी भी होती थी. तब और तब के पहले भी दुनिया के काम चलते थे. लोग पैदा होते, और मरा करते. माने सिर्फ इतना ही नहीं करते, इस बीच शादी भी करते, बच्चे भी करते. जब ऐसा कुछ करते निमंत्रण आता. वहां पहुंचो तो भोज भी होता, उसमें खाना मिलता. खाना जो होता वो आज जैसे न मिलता. बुफे का हिसाब न था. बैठ के भी खाते तो प्लेट जो है अब जैसे डिस्पोजल वाली न होती.


पत्तल मिला करती थीं, और कुछ गाढ़ा-पतला हो, रायता-तस्मई जैसी चीज हो तो उसके लिए दोना मिलता. पत्तल पहले एक दम सपाट गोल सी मिला करती. एक दम हरे पत्ते की, चाहो तो खाने के ठीक पहले धो भी लो. फिर उसमें भी तकनीक आई.
अगर बगल दो-तीन खंधे दिये जाने लगे. एक में अचार रख लो, एक में बूंदी, एक में कोंहड़ा की सब्जी और बड़े वाले में दाल-चावल सान लो, खूब जगह रहती और खाना भी सलीके से हो जाता. खा चुके तो उठो. अपनी पत्तल और दोना उठाओ खुद पछीती में फेंक आओअब हमारे यहां सिस्टम बदल गया है गुरू. थर्माकोल और प्लास्टिक की पत्तल आ रही है. प्लास्टिक को गलने में हजारों साल लगते हैं. इस मामले में जर्मनी वाले होशियार निकल गए. वहां पत्तलों को नेचुरल लीफ प्लेट्स कह कर भरपूर उत्पादन हो रहा है. हाथोंहाथ ली जा रही है. गल जाती है, नेचुरल है. प्रदूषण नहीं करती. लोगों को भली लगती है, और हम हैं कि भुलाए बैठे हैं.


जर्मनी में कौन पत्तों से पत्तल बना रहा है :: दरअसल इसी साल जर्मनी में एक नया स्टार्टअप शुरू हुआ है. लीफ रिपब्लिक के नाम से. इन लोगों ने पत्तों से पत्तल बनाने का काम शुरू किया और इसके लिए फंडिंग का जुगाड़ भी. लोगों को पता चला कि यार ये तो बहुत जबर काम है. कह रहे हैं पत्तल बनाएंगे लेकिन बिना एक भी पेड़ काटे. पत्ते भी इम्पोर्ट करेंगे. फिर इनको इत्ती रकम मिली जिसको कहते हैं छप्पर फाड़ के. फिर इन्होंने धकापेल पत्तल बनाने का काम शुरू कर दिया. इसके लिए फैक्ट्री डाल रखी है. मशीनों में प्रेस करके प्लेट-कटोरी सब बना रहे हैं.


उनका दावा है कि ये प्लास्टिक के बराबर ही मजबूत है. लेकिन गलने में देर नहीं लगती. इनका धंधा इत्ता बढ़ गया है कि अब तो बाहर विदेश भी भेजने लगे हैं. लेकिन अपने यहां के हिसाब से बहुत महंगा है. अव्वल तो ऐमेजॉन की साइट पर अपने यहां के लिए है ही नहीं. जहां के लिए है वहां के लिए साढ़े आठ यूरो, माने करीब साढ़े 6 सौ रुपए की पड़ेगी. रहने दो भाई हम खुदै बना लेंगे.

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चाट के लिए बहुत खास आगरा, चटोरों के लिए स्वर्ग से कम नहीं है ये शहर



सात अजूबों में से एक ताजमहल उत्तर प्रदेश के आगरा में स्थित है, जो पर्यटकों के बीच खासा लोकप्रिय है, देशी हो या विदेशी हर कोई आगरा में रहते हुए ताजमहल का दीदार करना चाहता है। लेकिन क्या कभी आपने ताजमहल घूमने के अलावा आगरा की गलियों में घूमते हुए वहां के लजीज व्यंजनों का मजा लिया है।हर राज्य और हर शहर के अलग अलग व्यंजन लोकप्रिय होते हैं,जैसे जयपुर की प्याज की कचौरी, दिल्ली की चाट तो मुंबई की भेलपूरी ठीक वैसे ही आगरा का पैठा बहुत मशहूर है। आगरा के पैठे से तो हर कोई वाकिफ है, लेकिन कई और भी लजीज व्यंजन है जो आपको अपनी आगरा ट्रिप पर अवश्य चखने चाहिए।
पेठा :: आप पेठा यूं तो कहीं से भी खरीद सकते हैं, लेकिन आगरा जैसा पैठा शायद ही नहीं मिले। आगरा में पैठा की कई वैरायटी मिलती हैं, जैसे सफेद, पीला, केसर, गुलाब, अनानास, स्ट्रॉबेरी, आम और पान पेठा आदि, तो अपनी अगली ट्रिप पर यहां के पैठे को खाना कतई ना भूलें। पंछी पेठा, प्राचीन पेठा, गोपालदास पेठे वाले यहाँ के जाने माने नाम हैं। शहर के प्रमुख चौराहों में आपको इनकी दुकाने मिल जाएंगी। नकली नामो से आपको सावधान रहना पड़ेगा।

 


चटनी संग पराठा :: आप सोच रहे होंगे कि ये तो हम अपने घर पर भी बना सकते हैं, इसमें ऐसा क्या खास है, तो जनाब खास है, क्यों कि, आगरे का भरवा परांठा सिर्फ आलू से नहीं बल्कि पनीर और अन्य सब्जियों को भरकर बनाया जाता है, जिसे पनीर, चटनी या फ‍िर दही के साथ खाया जाता है । खाकर जरुर देखियेगा। अगर आप आगरा के परांठे खाने के लिए बेताब है तो आप रामबाबू पराठे वाले के यहाँ जाइए, ये एक सुप्रसिद्ध रेस्टोरेंट है जहाँ आपको सिर्फ 110 तरह के सिर्फ परांठे ही मिलेंगे। तो सोचो मत एक बार जरूर जाओ। और एक बात ध्यान रखें, नकली नामों से सावधान।

चाट समोसा :: दिल्ली की चाट से तो सभी वाकिफ है, लेकिन आगरा की चाट भी कम मशहूर नहीं है, आगरे की चाट सिर्फ चटपटी ही नहीं बेहद लजीज भी होती है। इसके अलावा यहां के दही भाल, समोसा ,पनीर समोसा, पनीर आलू टिक्की और गोल गप्पे खासा लोकप्रिय है। आगरा में सेठ गली, सदर बाजार सेंट जोंस चौराहा, देहली गेट, भगवान टाकीज, खंगार, शाहगंज और ऐसे ही प्रमुख बाजारों में आपको एक से एक स्वादिष्ट चाट टिक्की मिल जाएगी। बेहतर समय शाम होने के बाद।


जलेबी बेढ़ई :: चाशनी में लबालब तैरती हुई गर्म गर्म जलेबी दही के साथ बेहद लजीज स्वाद देती है, इसके उल्ट बेढ़ई आगरा में सुबह सड़कों के क‍िनारे सुबह के नाश्‍ते में मिलती है। बेढ़ई के दो भाग होते हैं। इसका एक भाग काफी स्‍पाइसी और दूसरा मीठा होता है। यहां पर यह बेढई आलू की चटपटी सब्‍जी, हरी चटनी और दही के साथ परोसी जाती है। खासतौर पर भगत हलवाई, देवीराम हलवाई, गोपालदास, सत्तोलाला, ब्रजवासी हलवाई प्रसिद्ध नाम है जहाँ आप अपनी उंगलियों को चाटने के लिए मजबूर हो जाओगे। वैसे तो जलेबी बेढ़ेई आपको पूरे शहर में कहीं भी स्वादिष्ट मिल जाएंगी लेकिन ये आगरा शहर का नाश्ता है इसके लिए आपको सुबह सुबह ही जाना पड़ेगा।


नानवेज व्यंजन :: नॉन वेज खाने के शौकीनों के लिए तो आगरा जन्नत से कम नहीं है। मुगलों की राजधानी रह चुका आगरा में मुगलाई चिकन,चिकन टिक्का, तन्दूरी चिकन आदि लजीज व्यंजन खाने के बाद आप उंगली चाहते रह जायेंगे। आगरा में नाई की मंडी का चिकन मटन मार्केट, सदर मार्केट का मामा फ्रेंकी, चावला चिकन, अजीज चिकन रेस्टोरेंट, पिंच आफ स्पाइस जैसे प्रतिष्ठान बहुत फेमस हैं, एक बार यहाँ जरूर जाएं। अगर आपको रात में कभी भी भूख लगे तो नाई की मंडी बाजार पूरी रात खुला रहता है। यहाँ रात भर चटोरों की भीड़ लगी रहती है।

नोट :: आगरा आने का अनुकूल समय सिंतबर से मार्च के बीच में है। तो फिर स्वागत है आपका आगरा शहर में।

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